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समस्तीपुर जिले में 53 वां स्थापना दिवस खूब धूम धाम से मनाया गया, जिस उद्देश्य व तात्पर्य को लेकर जिले की स्थापना की गई थी, वह आज भी पूरी तरह से परिपक्व नहीं हुई है.

समस्तीपुर : समस्तीपुर जिला गुरुवार को अपने 53 साल पूरा करने के बाद 54 वें वर्ष में प्रवेश कर रहा है. जिला स्थापना दिवस पर गुरुवार को यहां जिला प्रशासन के द्वारा व्यापक तैयारियां की गई है. मुख्य समारोह पटेल मैदान में आयोजित की गई.जिला के 53 वें स्थापना दिवस को लेकर जिले में उत्साह का वातावरण बना रहा सभी सरकारी भवन स्थापना दिवस की पूर्व संध्या पर बैगनी रोशनी से नहा रही थी. बताते चलें कि समस्तीपुर का परंपरागत नाम सरैसा है। इसका वर्तमान नाम मध्यकाल में बंगाल एवं उत्तरी बिहार के शासक हाजी शम्सुद्दीन इलियास १३४५-१३५८ ईस्वी के नाम पर पड़ा है। कुछ लोगों का मानना है कि इसका प्राचीन नाम सोमवती था। जो बदलकर सोम वस्तीपुर फिर समवस्तीपुर और फिर समस्तीपुर हो गया।समस्तीपुर २५.९० उत्तरी अक्षांश एवं ८६.०८ पूर्वी देशांतर पर अवस्थित है। सारा जिला उपजाऊ मैदानी क्षेत्र है किंतु हिमालय से निकलकर बहनेवाली नदियाँ बरसात के दिनों में बाढ़ लाती है।समस्तीपुर जिले के मध्य से बूढ़ी गण्डक, उत्तर में बागमती नदी एवं दक्षिणी तट पर गंगा बहती है। इसके अलावा यहाँ से बांया भाग में, जमुआरी, नून, बागमती की दूसरी शाखा और शान्ति नदी भी बहती है।जो बरसात के दिनों में उग्र रूप धारण कर लेती है। यह जिला चार अनुमंडल, २० प्रखंडों, ३८० पंचायतों तथा १२४८ राजस्व गाँवों में बँटा है। अनुमंडल:दलसिंहसराय, शाहपुर पटोरी, रोसड़ा, समस्तीपुर सदर प्रखंड: दलसिंहसराय, उजियारपुर, विद्यापतिनगर, पटोरी, मोहनपुर,मोहिउद्दीनगर, रोसड़ा, हसनपुर, बिथान, सिंघिया, विभूतीपुर, शिवाजीनगर, समस्तीपुर, कल्याणपुर, वारिसनगर, खानपुर, पूसा, ताजपुर, मोरवा, सरायरंजन समस्तीपुर भारत गणराज्य के बिहार प्रान्त में दरभंगा प्रमंडल स्थित एक शहर एवं जिला है। इसका मुख्यालय समस्तीपुर है। समस्तीपुर के उत्तर में दरभंगा, दक्षिण में गंगा नदी और पटना जिला, पश्चिम में मुजफ्फरपुर एवं वैशाली, तथा पूर्व में बेगूसराय एवं खगड़िया जिले है। यहाँ शिक्षा का माध्यम हिंदी, उर्दू और अंग्रेजी है।लेकिन बोल-चाल में मैथिली, मगही बोली जाती है। इसे मिथिला का प्रवेश द्वार कहा जाता है। ये उपजाऊ कृषि प्रदेश है।समस्तीपुर पूर्व मध्य रेलवे का मंडल भी है।समस्तीपुर को मिथिला का ‘प्रवेशद्वार’ भी कहा जाता है।2011 की जनगणना के अनुसार इस जिले की जनसंख्या 4,261,566 है। जिसमें पुरुष की आबादी 2,230,003 एवं 2,031,563 स्त्रियाँ है। १८·५२% जनसंख्या अनुसूचित जाति की तथा ०·१% जनसंख्या अनुसूचित जनजाति की है। मानव विकास सूचिकांक काफी नीचे है।जिसकी पुष्टि इन आँकड़ो से होती है: साक्षरता: ४५·१३% (पुरुष-५७·५९%, स्त्री- ३१·६७%) जनसंख्या वद्धि दर २·५२% (वार्षिक) स्त्री परुष अनुपात: 928 प्रति 1000
घनत्वः ११६९ प्रति वर्ग किलोमीटर, समस्तीपुर राजा जनक के मिथिला प्रदेश का अंग रहा है। विदेह राज्य का अन्त होने पर यह लिच्छवी गणराज्य का अंग बना। इसके पश्चात यह मगध के मौर्य, शुंग, कण्व और गुप्त शासकों के महान साम्राज्य का हिस्सा रहा। ह्वे।नसांग के विवरणों से यह पता चलता है कि यह प्रदेश हर्षवर्धन के साम्राज्य के अंतर्गत था। १३ वीं सदी में पश्चिम बंगाल के मुसलमान शासक हाजी शम्सुद्दीन इलियास के समय मिथिला एवं तिरहुत क्षेत्रों का बँटवारा हो गया। उत्तरी भाग सुगौना के ओईनवार राजा 1325-1525 ईस्वी के कब्जे में था जबकि दक्षिणी एवं पश्चिमी भाग शम्सुद्दीन इलियास के अधीन रहा। समस्तीपुर का नाम भी हाजी शम्सुद्दीन के नाम पर पड़ा है। शायद हिंदू और मुसलमान शासकों के बीच बँटा होने के कारण ही आज समस्तीपुर का सांप्रदायिक चरित्र समरसतापूर्ण है। ओइनवार राजाओं को कला, संस्कृति और साहित्य का बढ़ावा देने के लिए जाना जाता है। शिवसिंह के पिता देवसिंह ने लहेरियासराय के पास देवकुली की स्थापना की थी। शिवसिंह के बाद यहाँ पद्मसिंह, हरिसिंह, नरसिंहदेव, धीरसिंह, भैरवसिंह, रामभद्र, लक्ष्मीनाथ, कामसनारायण राजा हुए। शिवसिंह तथा भैरवसिंह द्वारा जारी किए गए सोने एवं चाँदी के सिक्के यहाँ के इतिहास ज्ञान का अच्छा स्रोत है। अंग्रेजी राज कायम होने पर सन १८६५ में तिरहुत मंडल के अधीन समस्तीपुर अनुमंडल बनाया गया। बिहार राज्य जिला पुनर्गठन आयोग के रिपोर्ट के आधार पर इसे दरभंगा प्रमंडल के अंतर्गत १४ नवम्बर १९७२ को जिला बना दिया गया। अंग्रेजी सरकार के विरुद्ध हुए स्वतंत्रता आंदोलन में समस्तीपुर के क्रांतिकारियों ने महती भूमिका निभायी थी। यहाँ से कर्पूरी ठाकुर बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री रहे हैं। समस्तीपुर लोकसभा क्षेत्र के प्रथम सांसद स्व. सत्यनारायण सिन्हा लगातार चार बार सांसद रहे और कई बार कैबिनेट मंत्री भी रहे साथ ही जब इंदिरा गांधी राज्यसभा की सदस्य थीं तो इन्होंने लोकसभा के नेता सदन का कार्यभार भी संभाला है। अपने राजनीति के अंतिम चरण में ये मध्यप्रदेश के राज्यपाल के पद पर भी रहे। आकाशवाणी पर रामचरितमान पाठ शुरू करने केलिए सूचना प्रसारण मंत्री के रूप में इनका कार्यकाल सदा याद किया जाएगा। जिस उद्देश्य व तात्पर्य को लेकर जिले की स्थापना की गई थी, वह आज भी पूरी तरह से परिपक्व नहीं हुई है. वास्तव में बिहार के गौरवमयी इतिहास के प्राण माने जाने वाले मिथिलांचल संस्कृति और सभ्यता में जिले की विशिष्ट व पौराणिक पहचान रही है. समस्तीपुर के कई ऐतिहासिक स्थल अतुल्य भारत के जीवंत प्रमाण. एक-एक प्रखंड कालखंड का साक्षी हैं. महाकाव्य काल से लेकर मौर्य, शुंग और गुप्त शासनकाल तक का इतिहास. इन पर बेशक समय की मोटी परत चढ़ गई है, पर ऐतिहासिकता कण-कण में कायम है. समस्तीपुर जिला आज भी सुनहरे भविष्य के लिए आशा लगाए बैठी है।अंग्रेज शासन काल में स्थापित जिला मुख्यालय में चीनी मिल जिला स्थापना के करीब दस वर्षों बाद राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी के कारण बंद हो गया. वहीं, ठाकुर पेपर मिल भी बंद हो गया. इतना ही नहीं, इसके अवशेष तक को भी बेच दिया गया. जिला मुख्यालय से सटे मोहनपुर में बनाये गये औद्योगिक प्रांगण का भी अपेक्षित विकास नहीं हो पाया. शैक्षणिक विकास जिस गति से होनी चाहिए, वह नहीं हुआ. जिले की सिंघिया विधानसभा को समाप्त कर दिया गया। वही रोसड़ा लोकसभा को समाप्त कर दिया गया।जिला में स्थित सभी संस्कृत उच्च विद्यालय आज अपनी दुर्दशा पर आंसू बहाने के लिए विवश है.यह विद्यालय आज अपना अस्तित्व खोता जा रहा है.कभी बड़ी-बड़ी मिलों वाले इस जिले में समय के साथ बर्बाद होते गये उद्योग इतिहास केवल बीते वर्षों की कहानी नहीं है. निर्माण की निरंतर प्रक्रियाओं, विभिन्न स्वरूपों, क्षेत्र विशेष की भौगोलिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक एवं राजनैतिक स्थितियों में हुए बदलाव की प्रक्रियाओं, उसकी स्थिति का वर्णन और मूल्यांकन भी है. अपने स्वर्णिम अतीत की यादों को संजोये इस जिला ने क्या खोया और क्या पाया, मैं कोशिश किया हूं कि,आपको ज्यादा से ज्यादा जानकारी दे सकू,औद्योगिकीकरण में यह अधोगति को प्राप्त हो चुका है.लाखों मजदूर रोजगार के लिए अन्य प्रदेशों में प्रतिवर्ष पलायन कर रहे हैं.अतीत में उद्योगों से समृद्ध जिलावासी आज रोजगार के लिए भटक रहे हैं.खादी ग्रामोद्योग और विभिन्न तरह के कुटीर उद्योगों से जहां जिला के घर में समृद्धि थी, आज वे सब मृतप्राय हो चुकी है.राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त राजेन्द्र कृषि विश्वविद्यालय समस्तीपुर जिले में पूसा नामक स्थान पर है, इसके अलावा कोई अन्य उच्च स्तरीय तकनीकी शिक्षा संस्थान यहाँ नहीं है।

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