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रोसड़ा:मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के आह्वान पर वक्फ बिल के विरोध में काली पट्टी बांध कर अलविदा की नमाज अदा किये।

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रोसड़ा/समस्तीपुर: रोसड़ा शहर में रमजान के आखिरी जुमे पर अलविदा की नमाज़ अदा की गई।मुस्लिम समाज के लोगों ने आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के आह्वान पर वक्फ बिल के विरोध में काली पट्टी बांध कर अलविदा की नमाज अदा किये। शुक्रवार को पूरे प्रदेश और जिले में मुसलमानों ने इसका पालन करते हुए वक्फ संशोधन विधेयक का विरोध करते हुए हाथों में काली पट्टी बांधी और नमाज पढ़ी।शहर के रोसड़ा शहर के थाना रोड स्थित मदरसे वाली मस्जिद समेत अन्य स्थानों पर काली पट्टी बांध कर नमाज पढ़ा गय।नमाज के बाद देश की तरक्की भाईचारे और अमन और क़ौम की तरक्की के लिए दुआ कराई गई। रोसड़ा में जामा मस्जिद के अलावा अनुमंडल क्षेत्र की तमाम मस्जिदों में शांतिपूर्ण तरीके से जुमे की नमाज अदा की गई।शहर के गुजरी वाली मरकज मस्जिद और फकीराना की जामा मस्जिद समेत सभी मस्जिदों में नमाजियों ने देश में अमन-चैन और खुशहाली की दुआ मांगी। मुस्लिम इंतजामिया कमेटी के पदाधिकारी भी इस अवसर पर उपस्थित रहे। इस मौके पर वक्फ बिल का विरोध किया गया। रोसड़ा में जुमा अलविदा की नमाज के दौरान मुस्लिमों ने हाथों पर काली पट्टी बांधकर वक्फ बिल का विरोध किया।मुस्लिमों ने कहा कि, हम देश के दुश्मन नहीं हैं,जरूरत पड़ने पर हम देश के लिए अपना खून भी दे सकते हैं।लेकिन वक्फ प्रॉपर्टी हमारा अधिकार है और ये बरकरार रहना चाहिए।नमाज के बाद बड़ी तादाद में मुस्लिम समुदाय के लोगों ने बाजू पर काली पट्टी बांधकर वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2024 का विरोध किया। लोगों ने कहा,वक्फ जायदाद के लिए बनाए जा रहे कानून की मुखालिफत करते हैं। लोगों का कहना था कि,पहले जिस तरह वक्त का निज़ाम चल रहा था, वैसे ही चलता रहे, इसमें संशोधन न किया जाए। जो कानून पहले से बने हुए हैं वहीं रहे नई कोई तब्दीली/बदलाव न किया जाए। लोगों ने बताया कि,वक्फ की जायदाद हमारे पूर्वजों की है, इसमें किसी को दखल नहीं देना चाहिए। नमाजियों का कहना था कि,हम मुल्क के दुश्मन नहीं हैं, मुल्क की तरक्की के लिए हम खून देने को तैयार हैं।लेकिन, हमारे शरीयत के हुक़ूक़ और बुजुर्गों की वक्फ की गई जायदाद/प्रॉपर्टी पर कोई भी नया कानून न बनाएं। लोगों का कहना था कि, हमारी दरगाहों, खानकाहों से हमेशा अमन, चैन, आपसी भाईचारे और इत्तेहाद का पैगाम दिया जाता है। बताते चलें कि,शुक्रवार यानी जुम्मा का दिन खास होता है, जिसमें सभी लोग एक साथ इकट्ठा होकर नमाज अदा सकते हैं। मगर जब बात जुम्मा-उल-विदा की आती है, तो इसका महत्व और भी बढ़ जाता है।वैसे ही इस्लाम धर्म में जुम्मे को बहुत ही अहमियत दी गई है।जुम्मे के दिन में से एक घड़ी कबूलियत की होती है, जिसमें अल्लाह हर दुआ को कबूल करता है। यह दिन तब और खास बन जाता है, जब महीना रमजान का हो। रमजान के आखिरी शुक्रवार यानी जुम्मा को खास प्रार्थनाओं, इबादतों और कुरान की तिलावत के साथ मनाया जाता है।मुस्लिम लोग मस्जिदों में एक साथ इकट्ठा होकर जुम्मे की नमाज अदा करते हैं, अल्लाह से माफी मांगते हैं और रमजान के दौरान की गई इबादत के कबूलियत की दुआ मांगते है।अलविदा जुमा जिसे जुमात-उल-विदा भी कहा जाता है। यह रमजान महीने का आखिरी जुमा होता है। यह दिन इस्लाम में बेहद अहम माना जाता है, क्योंकि यह रमजान के आखिरी जुम्मे की नमाज होती है और इसे खास रहमतों और बरकतों से भरा हुआ माना जाता है।इसलिए यह दिन बहुत ही खास और बरकतों वाला दिन माना जाता है। यह रमजान के पवित्र महीने की अलविदा नमाज होती है। इसमें दौरान लोग खुदा से तौबा करते हैं, मगफिरत की दुआ मांगते हैं और अगले रमजान की उम्मीद करते हैं।

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