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सिंघिया: सिवैया गांव में बग़ैर रजिस्ट्रेशन के किराए के मकान में आवासीय मदरसे का किया जा रहा है संचालन:एसपी ने कहा जांच के बाद दोषी पाए जाने वाले संचालक पर होगी कार्रवाई

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सिंघिया/समस्तीपुर: सिंघिया प्रखंड के सालेपुर के मस्जिद एवं सिवैया गांव में मरहूम मास्टर गयासुद्दीन के पुत्र मोहम्मद इस्लाम उर्फ दुखों के मकान में मदरसा संचालक सालेपुर निवासी मुफ्ती सईद अनवर के द्वारा छोटे-छोटे  नन्हे मुन्ने बच्चे बच्चियों के भविष्य के साथ खिलवार किया जा रहा है।संचालकों द्वारा बगैर रजिस्ट्रेशन के अवैध रूप से छोटे कमरों में आवासीय मदरसो का संचालन किया जा रहा है।उन मदरसो में न तो बच्चों के पढऩे के लिए पर्याप्त कमरे हैं और न पर्याप्त शिक्षक।यहां शिक्षा के अधिकार अधिनियम की खुलकर धज्जियां उराई जा रही है। हद की बात तो यह है कि, सिवैया गांव में चलने वाले बच्चियों के लिए अवासीय मदरसा का नाम का भी पता नहीं है।संचालक मुफ्ती मोहम्मद सईद की हिम्मत की दाद देने पड़ेगी कि बगैर बोर्ड के ही मदरसा चला रहे हैं। सालेपुर की मस्जिद मैं तो जामिया दारूल हुदा के नाम का बोर्ड भी लगा हुआ है।आवासीय मदरसा जैसा कि नाम से पता चलता है,एक ऐसा मदरसा है जहाँ छात्र छात्राएं रहते और पढ़ते हैं। इन मदरसों में छात्रों के लिए रहने, खाने, पढ़ने, खेलने और अन्य गतिविधियों के लिए पर्याप्त जगह होनी चाहिए। एक छोटा कमरा इन सभी आवश्यकताओं को पूरा करने में सक्षम नहीं होगा।इसके अलावा छात्रों की सुरक्षा और स्वास्थ्य के लिए भी पर्याप्त जगह और सुविधा होनी चाहिए।छोटे कमरों में छात्रों का सामाजिक और भावनात्मक विकास भी प्रभावित हो सकता है, क्योंकि वे दूसरों के साथ बातचीत करने और घुलने मिलने के लिए पर्याप्त जगह नहीं पा पाएंगे।छोटे कमरों में आग या अन्य आपात स्थितियों में छात्रों को सुरक्षित रखना मुश्किल हो सकता है। इसके अलावा, छोटे कमरों में वेंटिलेशन की कमी से स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं भी हो सकती हैं।छोटे कमरों में पुस्तकालय, खेल का मैदान, या अन्य आवश्यक सुविधाएं प्रदान करना मुश्किल हो सकता है।आवासीय मदरसे, जो छात्रों को रहने की सुविधा भी प्रदान करते हैं, विशेष रूप से महत्वपूर्ण हैं क्योंकि वे छात्रों के जीवन और कल्याण से सीधे जुड़े होते हैं। बिना रजिस्ट्रेशन के चलने वाले मदरसे, छात्रों के अधिकारों और सुरक्षा के लिए खतरा पैदा कर सकते हैं।बिना रजिस्ट्रेशन के आवासीय मदरसे चलाना कानूनी तौर पर सही नहीं है। आवासीय मदरसे, जो छात्रों को रहने और शिक्षा प्रदान करते हैं, को सरकार से मान्यता प्राप्त करना आवश्यक है। बिना रजिस्ट्रेशन के चलने वाले मदरसे नियमों का उल्लंघन करते हैं। ऐसे संचालकों पर कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए।किराए के मकान में बिना रजिस्ट्रेशन के मदरसा चलाना गैरकानूनी है। मदरसे को चलाने के लिए, उसे सरकार के साथ पंजीकृत कराना आवश्यक है।बिना रजिस्ट्रेशन के मदरसा चलाना, कानूनी कार्यवाही को आमंत्रित कर रहा है।मदरसे को एक शैक्षणिक संस्थान माना जाता है, और भारत में, सभी शैक्षणिक संस्थानों को सरकार के साथ पंजीकृत होना चाहिए।बिना रजिस्ट्रेशन के मदरसा चलाने से, मकान मालिक और मदरसा संचालक दोनों को कानूनी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है।यह आवश्यक है कि मदरसा संचालक स्थानीय और राष्ट्रीय कानूनों का पालन करें,जिसमें पंजीकरण भी शामिल है। सूत्रों के अनुसार मुफ्ती सईद अनवर बराबर मदरसे का नाम बदल बदल कर मदरसे को संचालित करते हैं।कभी मदरसा जामिया दारुल हुदा तो कभी मदरसा दारुल हुदा अलबनात तो कभी मदरसा जामिया दारुल हुदा अल्बनिन वलबनात सूत्र बताते हैं कि,मदरसे के नाम पर मुफ्ती सईद दुकान चला रहे है।जगह-जगह मदरसे के नाम पर चंदा का उगाही करते हैं। इनका तार यूपी बिहार से जुड़ा हुआ है।लोगों का कहना है कि मदरसा संचालक मुफ्ती सईद अनवर मदरसे के नाम पर तो कभी मस्जिद बनवाने के नाम पर बिहार यूपी से खूब करते हैं चंदे‌ की उगाही उक्त मदरसे चंदे से चलते हैं। लेकिन इन चंदों का भी कोई आधिकारिक स्त्रोत उपलब्ध नहीं है। इस बात को लेकर सालेपुर की मस्जिद भी विवादों में रही थी। वहां के ग्रामीणों ने मुफ्ती सईद अनवर के द्वारा मस्जिद के नाम पर गलत तरीके से चंदा वसूली किए जाने का विरोध किए थे।अभी भी उस मस्जिद में मास्टर निजामुद्दीन जो सालेपुर के निवास है उसे मस्जिद में नमाज पढ़ने नहीं जाते हैं।कूछ महीना पहले इन्होंने रोसड़ा शहर में भी बच्चीयो के ट्यूशन पढ़ाने के लिए एक मकान किराए पर लेकर कोचिंग टाइप का संस्था खोले थे।जिस में 3 घंटा उर्दू अरबी अंग्रेजी की शिक्षा दी जा रही थी। मकान मालिक के द्वारा बराबर इनसे इनका आवासीयप्रमाण पत्र एवं कोचिंग संस्थान का रजिस्ट्रेशन नंबर कि मांग की जा रही थी।और उनके द्वारा किसी तरह बात को टाला जा रहा था। जब इन्हें महसूस होने लगा  कि बगैर कागज दिए बिना बात नहीं बनेगी तो इन्होंने बकरीद के मौके पर कोचिंग संस्था को 7 दिनों के लिए बंद किए थे।बकरीद के कई महीनो बीत जाने के बाद भी रोसड़ा में मुफ्ती के द्वारा संस्था नहीं खुला और वहां से फरार हो गए। इनके द्वारा रोसड़ा में 3 महीना संस्था चलाया गया। संस्था में पढ़ाने वाली शिक्षिका और संस्था में काम करने वाली दाइ का महिने का तनखा कोचिंग संस्था में दूध देने वाली के दूध का पैसा और जिस मकान में चल रहा था कोचिंग संस्था उस मकान मालिक का किराए तक नहीं दिए। इस 3 महीने में इस इलाके से लाखों रूपए चंदा के नाम पर उगाही करके ले गए। इस मामले को लेकर जिले के पुलिस कप्तान अरविंद प्रताप सिंह ने ऐसे मदरसो की जांच कर जांच में दोषी पाए जाने वाले संचालक पर कार्रवाई की बात कही है।

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