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बिहार चुनाव में पीएम मोदी के मां वाले बयान का असर? भावनात्मक कार्ड से कितना बदलेगा समीकरण

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मोहम्मद आलम

बिहार विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे नज़दीक आ रहे हैं, सियासी बयानबाज़ी भी चरम पर है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का हालिया इमोशनल बयान, जिसमें उन्होंने अपनी मां को लेकर विरोधियों की ओर से की गई कथित अभद्र टिप्पणियों का ज़िक्र किया, अब चर्चा का बड़ा मुद्दा बन गया है। सवाल यह है कि क्या यह भावनात्मक कार्ड बिहार की राजनीति में वास्तविक असर दिखाएगा या फिर यह महज़ एक चुनावी दांव साबित होगा।जनता की नब्ज़ पर असर या सहानुभूति की लहर?बिहार की राजनीति जातीय समीकरणों, विकास के वादों और स्थानीय मुद्दों पर टिकी रही है। ऐसे में मोदी के मां को लेकर दिए गए बयान से सहानुभूति की लहर उठ सकती है, लेकिन यह कितना वोटों में तब्दील होगा, यह कहना अभी मुश्किल है। गांव-गांव और चौपालों में इस बयान पर चर्चा शुरू हो चुकी है। कई लोग इसे प्रधानमंत्री की निजी भावनाओं से जोड़कर देख रहे हैं, वहीं विपक्ष इसे चुनावी स्टंट बताने से पीछे नहीं हट रहा।
विपक्ष का पलटवार:
महागठबंधन के नेताओं ने कहा है कि मोदी हर बार भावनात्मक कार्ड खेलकर जनता का ध्यान असल मुद्दों से भटकाने की कोशिश करते हैं। उनका आरोप है कि बेरोज़गारी, महंगाई, किसानों की बदहाली और बिजली-पानी जैसी समस्याओं से ध्यान हटाने के लिए इस तरह के बयान दिए जाते हैं।
प्रशांत किशोर का विश्लेषण:प्रशांत किशोर ने पहले ही कहा था कि बिहार का वोटर अब भावनाओं से ज़्यादा अपने स्थानीय मुद्दों और रोज़मर्रा की परेशानियों को लेकर फैसला करेगा। अगर उनकी यह भविष्यवाणी सच होती है तो मोदी का यह इमोशनल बयान चुनावी मैदान में अपेक्षित असर नहीं डाल पाएगा।
निष्कर्ष:मोदी का मां को लेकर दिया गया बयान निश्चित रूप से चुनावी विमर्श को भावनात्मक मोड़ दे रहा है। लेकिन बिहार की सियासत में यह कितना असर डालेगा, यह इस बात पर निर्भर करेगा कि जनता भावनाओं के बहाव में बहती है या फिर स्थानीय समस्याओं को लेकर मतदान करती है।

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