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रुसेरा घाट स्टेशन पर ठहराव नहीं तो चैन नहीं – रोसड़ा में जनसैलाब, गूंज उठी सड़कों पर हुंकार

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मोहम्मद आलम
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युवाओं के नारों से गूंजता रहा पूरा शहर, दुकानदारों से लेकर बुद्धिजीवियों तक हर वर्ग उतरा सड़क पर
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रोसड़ा (समस्तीपुर)।रविवार को रोसड़ा की धरती पर अभूतपूर्व नजारा देखने को मिला। रुसेरा घाट रेलवे स्टेशन पर सभी ट्रेनों के ठहराव की मांग को लेकर युवाओं ने जो जुलूस निकाला, उसने पूरे इलाके की सियासत को हिला कर रख दिया। हजारों की तादाद में लोग सड़कों पर उमड़े और पूरा शहर नारों से गूंजता रहा।“ठहराव दो – हक़ दो!”, “रोसड़ा की आवाज़ दबेगी नहीं!”, “रेल मंत्री होश में आओ!” जैसे नारों से गलियां और चौक-चौराहे कांप उठे। यह आंदोलन पूरी तरह शांतिपूर्ण रहा, लेकिन इसकी गूंज ने साबित कर दिया कि अब जनता का सब्र जवाब दे रहा है।

दुकानदारों ने किया समर्थन, रोसड़ा थम गया

जुलूस के दौरान रोसड़ा शहर मानो ठहर-सा गया। दुकानदारों ने अपनी-अपनी दुकानें स्वेच्छा से बंद कर दीं और आंदोलन का हिस्सा बन गए। भीड़ में सिर्फ युवा ही नहीं बल्कि शिक्षक, बुद्धिजीवी, सामाजिक कार्यकर्ता और बुजुर्ग भी कंधे से कंधा मिलाते नजर आए। महिलाओं और बच्चों की भागीदारी ने इस आंदोलन को और ज्यादा जनांदोलन का रूप दे दिया।

नेताओं पर बरसा गुस्सा

प्रदर्शनकारियों ने मंच से साफ कहा—“सांसद-विधायक फोटो खिंचवाने और मंच सजाने में लगे रहते हैं, रेल मंत्री बार-बार वादे करते हैं, लेकिन रुसेरा घाट रेलवे स्टेशन पर ट्रेन का ठहराव आज तक नहीं मिला। जनता अब धोखे में नहीं आने वाली।लोगों ने आरोप लगाया कि नेताओं की लापरवाही और उदासीनता के कारण पूरे इलाके को उपेक्षा झेलनी पड़ रही है। “जब तक ठहराव नहीं मिलेगा, तब तक हमारी लड़ाई जारी रहेगी”—यह संदेश हर तरफ गूंजता रहा।

निर्णायक चेतावनी

इस विशाल प्रदर्शन से जनता ने सरकार और रेलवे प्रशासन को कड़ा संदेश दिया। प्रदर्शनकारियों ने कहा कि यह सिर्फ ट्रेनों के ठहराव की मांग नहीं, बल्कि रोसड़ा की दशकों से हो रही अनदेखी के खिलाफ निर्णायक लड़ाई है।भीड़ से उठी आवाज़ थी—“अगर मांग पूरी नहीं हुई तो यह आंदोलन यहीं तक सीमित नहीं रहेगा, इसे राज्यव्यापी रूप दिया जाएगा। दिल्ली तक आवाज़ पहुंचाई जाएगी और तब तक चैन से नहीं बैठेंगे जब तक रुसेरा घाट पर सभी ट्रेनों का ठहराव सुनिश्चित नहीं हो जाता।”

युवाओं की हुंकार

आंदोलन की कमान युवाओं ने संभाली। उनका जोश और जुनून इतना प्रखर था कि शहर का माहौल पूरी तरह आंदोलनी हो गया। हजारों की तादाद में युवाओं की हुंकार ने यह स्पष्ट कर दिया कि यह लड़ाई लंबी है, लेकिन जीत उनकी ही होगी।

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